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________________ '१९ कालाधिकार । तीन उपवास और ग्रीष्मकालमें षष्ठ-दो उपवास निरंतर देने चाहिए। यह तीनों कालोंमें देनेयोग्य मध्यम तप है ॥ १३२॥ ___ अब जघन्य तप कितना देना चाहिये यह बताया जाता हैवर्षाकालेऽष्टमं देयं षष्ठमेव हिमागमे । चतुर्थ ग्रीष्मकाले स्यात्तप एव जघन्यकं ।१३३॥ __ अर्थ-वर्षाकालमें अष्टम-तीन उपवास, शीतकालमें षष्ठ-दो उपवास और ग्रीष्मकालमें चतुर्थ-एक उपवास व्यवधानरहित. देने चाहिए। यह तीनों कालोंमें देने योग्य जघन्य तप है। . . आगे दूसरी तरह कालका और तपका विभाग करते हैंअथवा द्विविधः कालो गुरुर्लघुरिति क्रमात् । शरद्वसन्ततापाः स्युर्मुरवो लघवः परे॥१३४ ।। अर्य-अथवा गुरुकाल और लघुकाल इस क्रमसे काल दो प्रकारका है। शरद, वसंत और ग्रीष्म ये तीन गुरुकाल हैं। अवशिष्ट वर्षा शिशिर और हेमन्तं ये तीन लघुकाल हैं । भावार्थएक वर्षमें छह ऋतुएं होती हैं और बारह महीनेका एक वर्ष होता है तथा दो दो महीनेकी एक एक ऋतु होती है उनके नामः शरद, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शिशर ओरहेमन्त हैं। आसोज भोर कार्तिक ये दो महोंने शरद् ऋतुके, चैत्र और वैशाख ये दो वसंत ऋतुके, ज्येष्ठ और आषाढ़ ये दो ग्रीष्म ऋतुके, श्रावण और भाद्रपद ये दो वर्षाऋतुके, मगसिर और पूप ये दो हेमन्त.
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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