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________________ प्रतिसेवाधिकारें। M संयतोंको दो तरहको हंसी है। तथा जिस सीके हँसनेमें सारा शरीर इलने लग जाय तो उसका प्रायश्चित्त एक कल्याणक है ॥६६॥ मृद्धरित्रसगाम्बु परिहर्तुं विलंघने। मार्गे सत्यपि कल्याणं विशुद्धः पथिवर्जितः॥६॥ ___ अथे---मिट्टोका देर, हरी घास, दोइन्द्रिय तेइंद्रिय चौइंद्रिय पंचेन्द्रिय त्रस जीव, खड्डा, और जल इन चीजोंको रास्ता होते हुए भी उनसे वचनेके लिए उन्हें लांघ कर जाय तो कल्याणक प्रायश्चित्त है। तथा मार्ग न होनेके कारण इन्हें लांघना पड़े तो कोई प्रायश्चित्त नहीं हैं॥६॥ मोद्यायनांगुलिस्फोटे पुरुमर्दोऽपवीक्षणे। कल्याणं पंचकल्याणं कटाक्षेऽसंज्ञिवीक्षते ॥६॥ अर्थ-मुखसे 'टच' करने और अंगुली चटकानेका पायश्चित्त पुरुमंडल है। टेढ़ी नजरसे देखनेका प्रायश्चित्त एक कल्याणक हैं। तथा कटाक्षभरी दृष्टिसे देखनेका जिसको कि मिथ्यादृष्टि देख लें तो पंचकल्याणक प्रायश्चित्त है ॥६॥ ज्ञानगर्वादिभिर्मत्तो रलिनो योऽपमन्यते। . तदर्पदोषघाताय पंचकल्याणमश्नुते ॥ ६९॥ अर्थ-जो ज्ञानमद, नातिपद, · कुलमद, आदि पदोंसे उन्मत्त होकर रनत्रयधारी साधुनोंका अपमान करता है वह
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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