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________________ प्रायश्चित्त-समुच्चय । श्चित्तका ग्रन्थ है अतः यहां उन्हों चोनोंका संबंध लगाना चाहिये जिनका मुनि धर्मसे कुछ संवन्ध है। यहां दवात, कलम, नेतृलता आदि लिखनेको चोजें जघन्य हैं। पत्रजाति, पट्टी, कमंडलु आदि मध्यम चीजें हैं। सिद्धान्त-पुस्तक आदि. उत्कृष्ट चीजें हैं। ऐसी जघन्य चीजें जघन्यमूल्यमें, मध्यम मध्यम मूल्यमें और उत्कृष्ट उत्कृष्ट मूल्यमें अथवा उत्कृष्ट और मध्यम चीजें जघन्यमूल्यमें और जघन्य चीजें कम मूल्यमें खरीद करे वहां तक विशुद्ध है। हां! यदि चौर डाकू आदिसे ये चीजें ले तो वह अवश्य दोषी है अतः इस दोषसे उन्मुक्त होनेका प्रायश्चिच पंचकल्याणक है ॥५०॥ तृणपंचकसेवायां स्थानिर्विकृतिपंचकं । दूष्याजिनासनानां च कल्याणं पंचकं सकृत् ।५१। __अर्थ-शालो, ब्रोही. कोद्रव, कगु और रवक इनको तृणपंचक कहते हैं इनके सेवन करनेका प्रायश्चित्त पांच निर्विक्रति आहार है। तथा वस्त्र पंचक, चर्मपंचक और आसन पंचकके एकवार उपभोग करनेका प्रायश्चित्त एक कल्याणक है । दृष्य, प्रवार घरपट, तौम और वस्त्र ये पांच अथवा अण्डज, वोडजा वालज, वल्कलज, ओर शृङ्गज ये पांच पंचक होते हैं। व्याघ्रचर्म, भल्लुकचर्म, हरिणचर्म, मेषचर्म और अनाचर्म ये पांच अजिन या चर्म पंचक हैं। तथा लोहासन, दंडासन, मासंदक; आयाएहक, और पोतिक ये पांच प्रासनपंचक हैं ॥५१॥
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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