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________________ ३२ प्रायश्चित्त-समुच्चय । त्रिसंयोगी शलाकाए हैं। अठारहवीं शलाका निर्विकृति पुरुमंडल और क्षमणकी ओर बीसवीं शलाका निर्विकृति आचाम्ल और क्षमणकी है। आगाढकारणकृत, सकृत्कारी, असानुवीची, अयत्नस सेवी तेरहवें दोषका प्रायश्चित्त सातवीं और दशर्वी द्विसंयोगीदो शलाकाएं हैं। सातवी शलाका निर्विकृति और आचराम्लको ओर दशवी शलाका पुरुमंडल और भाचाम्लकी है। अनागाढकारणकृत, सकृत्कारी, असानुवीची. अयत्नसेवी चौदहवें दोषका प्रायश्चित्त चौवीसों और पच्चीसवीं त्रिसंयोगी. दो शलाकाएं हैं। चौवीसवीं शलाका पुरुमंडल एकस्थान ओर क्षमणकी और पच्चीसवीं आचाम्ल एकस्थान और क्षमणकी है। आगाढकारणकृत, असकृत्कारी, असानुवीची अयत्नसेवी पंद्रहवें दोषका प्रायश्चित्त सतरहवों और उन्नीसवीं त्रिसंयोगी शलाकाएं हैं। सतरहवीं शलाका निर्विकृति, परु. मंडल और एकस्थानकी और उनीसवीं शलाका निर्विकृति , १- अट्ठारस वीसदिमा, सत्तम दसमीय, एकवीसदिमा। तेवीसदिमा, सत्तारसी य एऊम वीसदिमा । चौदहवे दोषमें ऊपर चौवीसवीं और बच्चीसी शलाका बताई है और इस गाथा इक्कीसवीं और तेईसवीं। यह . आचार्य सम्प्रदायका भेद मालूम पड़ता है। अन्तर दोनों में इतना ही है कि दशवें दोषका प्रायश्चित्त चौदहवे में और चौदहवेंका दशवे में परस्पर वताया गया है। मंग दोनों ही स्थलों में त्रिसं. योगी हैं।
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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