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________________ प्रायाश्चत्त-समुच्चय । कारों, सानुवीची प्रयत्नप्रतिसेवी तृतीय दोपका पहली निर्विकृति शलाका और दूसरो पुरुमंडल शलाकारूप छोटा प्रायश्चित्त है। अनागाढकारणकृत, असकृत्कारो, सानुवीची प्रयत्नमतिसेवी चौथे दोषका पंद्रहवीं और तीसवों शलाकारूप गुरु प्राय. श्चित्त है। पंद्रहवीं शलाका एकस्थान ओर क्षमण इस तरह :द्विसंयोगकी और तोसवीं शलाका पुरुमंडल, आचाम्ल, एकस्थान और क्षमण इस तरह चतुःसंयोगकी है। आगाढकारणकृत, सक्कारी, असानुवीची, प्रयत्नसंसेवी, पंचम दोषका प्रायश्चित्त छठो और तेरहवीं शलाका है। दोनों ही शलाकाएं "द्विसंयोगवाली हैं। छीमें निविकृति और पुरुमंडल और तेरहवीमें आचाम्ल और एक स्थान है । अनागाढकारणकृत, सककारी, असानुवीची प्रयत्नस सेवी छठे दोषका प्रायश्चित्त चौदहवीं और सताईसवीं शलाका है। चौदहवीं शलाका आचाम्ल और क्षमण ऐसे द्विसं यांगको और सत्ताईसवीं शलाका निर्विकृति, पुरुण्डल, आचाम्ल और क्षमण ऐसे चतुःसंयोगकी है। आगाढकारणकृत, असकृत्कारी असानुवीची प्रयत्लस सेवी सातवें दोषका प्रायश्चित्त सोलहवीं और वाईसवीं त्रिस योगी दो शलाकाएं हैं। सोलहवीं शलाका निर्विकृति, पुरुमंडल और आचाम्लकी और बाईसवीं शलाका, पुरुमंडल प्राचाम्ल और एकस्थानकी है। अनागाढकारणकृत, असकृत्कारी, असा१-णवी वीदिमा पढम दुइजाय पपणास तीता। छट्टी तेरसमी विय चोहसी सत्तवीलदिना ॥ - - - -
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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