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________________ चूलिका । भी इसके दोष नहीं ग्रहण करता है इस प्रकार अच्छी तरह जान ले ॥१८॥ शपथं कारयित्वाथ क्रियामपि विशेषतः । बहूनि क्षमणान्यस्य देयानि गणधारिणा ॥१२९॥ अर्थ-भनन्तर उससे शपथ कराकर और विशेष विशेष मतिक्रमण कराकर उसको बहुतसे उपवास प्रायश्चित्त दे॥ द्रव्यं चेद्धस्तगं किंचिद्वंधुभ्यो विनिवेदयेत् । तदास्याः षष्ठमुद्दिष्टं सोपस्थानं विशोधनं ॥ अर्थ-यदि पार्यिकाके पास सोना, चांदी आदि कुछ भी द्रव्य हो और वह उस द्रव्यको अपने बंधुओंको देवे तो उस वक्त उसके लिए प्रतिक्रमण सहित पठोपवास प्रायश्चित्त है। येन केनापि तल्लब्धं पुनद्रव्यं च किंचन। वैयावृत्यं प्रकर्तव्यं भवेत्तेन प्रयत्नतः ॥१३१ ॥ . अर्थ-जिस किसी भी उपायसे कुछ भी द्रव्य आर्यिकाको मिले तो उस द्रव्यसे धर्मप्राणियोंका प्रयत्नपूर्वक उपकार करना चाहिए। यहो उसके लिए प्रायश्चित्त है ॥ १३१॥ भ्रातरं पितरं मुक्त्वा चान्येनापि सधर्मणा । स्थानगत्यादिकं कुर्यात् सधर्मा छेदभागपि ॥ अर्थ-पिता और भाईको छोड़कर) यदि आर्यिका अन्य पुरुपको जाने दीजिये साधर्मी गुरुभाईके साथ भी कायोत्सर्ग,
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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