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________________ चूलिका। प्रमादवश समाचार क्रियामें एक वार दोष लगाने पर षष्ठ और बार बार दोष लगाने पर कल्याण दे, तथा दर्गवश एक बार दोष लगाने पर षष्ठ और बार बार दोष लगाने पर पंचकल्याण प्रायश्चित्त दे ॥ ११६ ॥ मृजलादिप्रमां ज्ञात्वा कुड्यादीनां प्रलेपने । कायोत्सर्गादिमूलान्तमार्याणां प्रवितीर्यते ॥ अर्थ-आर्यिकाओंको दोवाल लीपना, भूमि लीपना, औषधिपात्रोंको धोना, अग्निजलाना आदि कार्यों के करने पर मिट्टी, जल, आदि शब्दसे अग्नि, वायु, वनस्पति आदिका प्रमाण जानकर उसके अनुसार कायोत्सर्गको आदि लेकर पंचकल्याण पयत प्रायश्चित्त देना चाहिए। भावार्थ-मिट्टो जल, आदिके परिमाणके अनुसार जघन्य प्रायश्चित्त कायोत्सर्ग है, उत्कृष्ट पंच कल्याण है और मध्यम प्रायश्चित्तके अनेक विकल्प हैं। सो इस परिमाणके अनुसार समझना चाहिए कि बिल्लीके पर जितनी मिट्टी खोदनेका, अंजलि प्रमाण जल खर्च करनेकां दीपककी लौ प्रमाण अग्निके बुझानेका हाथसे एक बार, दो वार अथवा तीन बार हवा करनेका एक एक कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त है। इस प्रमाणसे ज्यों बढ़ता बढ़ता मिट्टी जल आदिका प्रमाण हो यों त्यों बढ़ता बढ़ता प्रायश्चित्त समझना चाहिए ॥ १५७ ॥ -
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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