SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रायश्चित प्रयत्नचारीको कल्याण, स्थिर अप्रयलचारीको तीन उपवास, अस्थिर प्रयत्नचारीको कल्याण और अस्थिर अप्रयत्नचारीको दो उपवास मायश्चित्त देना चाहिए ॥ ८॥.... षष्ठं मासो लधुर्मूलं मूलच्छेदोऽसकृत्पुनः। उपवासास्त्रयः षष्ठं लघुमासोऽथ मासिकं ॥९॥ .. __ अर्थ-इन्हीं उपर्युक्त आठ पुरुषोंके वारवार असंज्ञी जीवके. घातका प्रायश्चित्त दो उपवास, लघुमास, मासिक, मूलच्छेद, तीन उपवास, दो उपवास, लघुमास और मासिक है। भावार्थमूलगुणधारो प्रयत्नचारो स्थिरको वारवार असंज्ञीजीवके मारने . का प्रायश्चित्त दो उपवास, अप्रयत्नचारी स्थिरको कल्याण, प्रयत्नचारी अस्थिरको पंचकल्याण, अभयलचारी अस्थिरको मूलच्छेद देना चाहिए । तथा उन्तरगुणधारी प्रयत्नचारी स्थिरको तीन उपवास, अप्रयत्नचारी स्थिरको पट-दो उपवास, प्रयत्नचारी अस्थिरको कल्याण, और अयलचारी अस्थिरको मासिक-पंचकल्याण प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥६॥ एतत्सान्तरमाम्नातं संज्ञिनि स्यानिरंतरं । तीव्रमंदादिकात् भावानवगम्य प्रयोजयेत् ॥१०॥ __ अर्थ यह ऊपर कहा हुआ प्रायश्चित्त एकवार और वारवार असंज्ञीजीवको मारनेवाले साधुके लिए सांतर माना गया है। घि आदि कारणोंका समागम मिल जाने पर जो आचार्यको ..
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy