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________________ चुलिका। भावार्य-प्रौदारिक, वैक्रियक, पाहारक, तैजस और कामण इन पांच शरीरों ममत्व-भावके सागको कायोत्सर्ग कहते हैं। , एकेन्द्रियके घातका एक कायोत्सर्ग, दो इन्द्रियके घातका दो कायोत्सर्ग, तेइन्द्रियके घातका तीन कायोत्सर्ग पार चौइन्द्रियके घातका चार कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त है। पंचेन्द्रियजीवके घातका प्रायश्चित्त आगे कहेंगे॥३॥ उत्तरमूलसंस्थेष्वप्रमादादर्पतश्छिदा । कायोत्सगोंपवासाः स्युरिंद्रियमाणसंख्यया ॥४॥ अय-उत्तरगुणधारो मार मूलगुणधारो साधुझे अपवादबन और प्रमादयश जाववध हो जाने पर इंद्रियसंख्या और प्राण संख्याके अनुसार कायोत्सर्ग आर उपपास प्रायश्चित होने हैं। भावार्थ-पूर्वोक्त पांचों प्रकारके प्रत्येक एकेन्द्रियजीवोंक एक एक स्पर्शन इंद्रिय होता है। दो इंद्रिय जीवोंके स्पर्शन ओर रसना ये दा. तेई दिय जीवोंके. स्पर्शन, रसना और घाण ये तीन, चौइन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन, रसना, प्राण और चतु ये चार, ओर पंचेन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन, रसना, घाण, चतु और श्रोत्र ये पांच द्रियां होतो हैं। स्पर्शन, रसना, प्राण, चतु भोर श्रान ये पांच तो इन्द्रियां, मनोवल, वचनवल ओर कायवल ये तीनवल, उच्छवास निश्वास और आयु ये दश प्राण हैं । तदुक्तं
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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