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________________ बसंतविलास [पथ ८९-९७ अत्रस्थः सखि लक्षयोजनगतस्यापि प्रियस्यागम: ............ वेत्त्याख्याति च विकू शुकादय इमे सर्वे पठन्तः शठा। . मत्कान्तस्य त्रियोगदुःखदहनज्वालावलीचन्दनः । काकस्तेन गुणेन काञ्चनमये व्यापारितः पारे ।। ... ८९ [३९] देसु कपूरिहिं वालि रे रासि रे बलिय विशेसु। सोवनचांचु निरूपम रूपम पांखुडी देहु ॥ ९० (४९) . येनागच्छन् समाख्यातो येन नीतश्च ग्रे पतिः। .. प्रथमं सखि का पूज्यः काकः किं वा क्रमेलकः ॥ ९१ [४०] सकुनविचारू संसाविध आविय तिह वालंभु। ' लभरि ते प्रिउ निरखि तु हरविय देह परिरंभु ॥ ९२ (५०) चिरविरदखिन्नहिययाण दुस्कंठियप्रणाणं मिहुणाणं । . न तहा सुरयपसंगो कहापसंगो जहा होइ ॥ ९३ [४१] कामिणि पामइ जे सुख ते मुखिकण न जाई। पामिय नइं प्रियसंगा अंगि मनोरथ थाई॥ १४ (५२) .. वाले नाथ विमुञ्च मानिनि रुप रोपान्मया कि कृतं खेदोऽस्मासु न मेऽपराव्यति भवान् सर्वेऽपराधा मयि ।। तत् किं रोदिषि गद्गदेन वचसा कस्याग्रतो रुद्यते न त्वेतन्मम का तबास्मि दयिता नास्त्रीत्यतः खिद्यते ।। ९५ . . किंता न कया अह नो करेसि. काहिसि न सुहा इत्ताहे। अवहारेण अलज्जिर साहसु कयरे खमिज्जन्ति ॥ ९६ , . [४२] बोलावइ तउ नहुयर बहुयर भगि भतार।.. - एक दियइ ति उपालंभ वालंभ मुखि मुवि बार ॥ ९७ (७०) 90. a. पांघुटी for पांखुडी. ... 92. b. निरपि for निरखि; हरपिय for हाखिय.. 93. a. दूरउठिमाण for दूरुकंठियमणाणं; मियाणं for मिहणाण, . 96, a. फरेमि for करेसि. b. कयरि for कयरे. 97. a. योलावद
SR No.010758
Book TitleVasant Vilas Fagu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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