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________________ [ ७० ] है अयाण अणवूझ, प्रघळ कपटी वड पापी। कामी क्रोधी कहर, विले पर निंदा विद्यापी। अति लोभी लालची, कूड अधिकी मन काळी । मुझ तणे महाराज, दई भ्रम रौ देवाळी । वुधहीण विळे सत वाहिरी, तु अजरो वाल्ही टकी । हेक तौ दया या नहीं, पीरदास सूरखि पकौ ॥१६६।। मुरिखि मन माहरो, चरण चाहै चत्रभुजरा। किम करि भेटिस किसन, कटक प्राडा अकरम रा। सिघ सरीख ससार, प्राण डाचा मा पडियो । नर किम कर निसरीस, जरू ले ताळो जडियो। नारगी भुगति करि नेह निज, इतौ पाप कीधी असन । नडे निराट देखे नही, कोडि कोस अळगो किसन १६७॥ किसन किसन कहि किसन, हस वड पाप हरसे । किसन किसन कहि किसन, किसन किल्याण करसे । किसन कहता किसन, देवळे दरसण देस । किसन क्रिपाल क्रिपाल, राम पातिग नै रेसे । करतार घणकासू कहा, वडा देव वांमण तपा। केसवा रखे कुमया कर, किसन हिमै करिजो क्रिपा ॥१६८।। क्रिपा करे सो किसन, हम रीझसौ घणी हरि। नरा नाह नरसिंघ, प्रभु पहलाद तणी परि॥ दरिसरग देसी दई, मया करिसी मो माथे। तिम मोनां तूठसौ, प्रभु जिम तूठा पाथ। हेक श्री सोच मोनै हुनौ, घरपो जोर वळवंत घरण । माहरै पाप छै माँकळी, तोसा किम झलिस त्रिगुरण ।। १६६ ।। तू वळिहीणो त्रिगुण, सही छ पातिग सवळी । तू अरगरूप अकाज, निगुण अभ्यागत निवळो। हाथ नही ताहर, पाव बाहिरी प्रमेसर । पेट पूठ नही पाव, नाक बाहिरौ किसी नर।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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