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________________ श्री लिखमी अवतार सरव लिखमी सारीखी। जे जायी जगत नां अनन्त इहडी विधि ईखी। मोहणी रूप तुनां निमो विसन नमो तु लच्छिवर। ताहरै सीत चला तणी सेव विलगी संखघर ||१६|| सख बड़ी तु संख सख पाउघ सवाह । गदा पदम चक्र ग्यान विस्रव ऊपरि ले वाहैं। आप आप सा इसो आप आप ना उडाड । आप आप ना ध्रव आप आप ना खवाड़े। आप री आप रीख्या करे खरा देव तुना खमा। आप ना आप कोप अनन्त आप निमो तु आतिमा ॥२०॥ आप आप ना दुख दिय, आप आप सुख आप । ग्यान तुहारी एह गति, बंभ सम रा वाप ||२|| रमं आप तु आप मा, नमै श्राप नां प्राप। आप खवारे पाप ना, साहिब निमो संताप ॥२२॥ तू करता तु भोगता, रहै अकिरिता राम । विसव घडे भाजे विसव, विसव तणी विसराम ||२३|| ॥ कवित्ति ॥ विसव तणी विधि वाव विसव इणि भांति वरणाव। जगत रजोगुण जनम हुनौ सतगुण हुलरावे । भाखि सतोगुण भलो खरो कोई कहिले खोटो। त्रिविध तरणी विच तीन त्रिविध तामस गुण त्रोटो। रजोगुण ब्रह्मगुण सातसी तिको ग्यान पतिसाह गिरिण। तामसी रूप सकर तरणी पति गुणा मा राम पिरिण ॥२१॥ रामपति जगपति सति रुघनाथ कहै सति । विद्या अविद्या बुरी एक अहिकार बुरो अति ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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