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________________ [ ४० । हीय जीव जीव मा देव देव मा वस हरि । वसे खारिग वाणि मां पार प्रांमिजे किसी परि। सकति माहि सिव माहि रहै वभ माहि धरणेरौ। जबक माहि जु मांहि अनन्त तिलि हेक ओछेरौ । परमेस श्राप पारणी पवन कलक माहि निकलंक किरि। ससार माहि बाहरि सदा थाहरीयो थल माहि थिरि॥६॥ ॥ दूहा ॥ 'थल मा जल मां थूब मा, जगम सा जगदीस। थावर मा, अनमा अधिक, आप सरव को ईस ॥१०॥ सरब' सरब तु सांइयाँ, रांम किसन मां राम । नांग 'नरा मां निरजरा, नाम माहि नह नाम ॥१॥ बुरा माहि बेकारमा, छोति छोति मा छोति । धरम मांहि अघरम मा, जीव जीव मा जोति ॥१२॥ ॥कवित्तिः॥ जोति निमो जगदीस जीव जीव मा जडाणौ । किसन अनन्त कोडिरौ कांइ अवतार कहाणो । दुख काइ देखें देव सुख कांइ इतरौ सहियो। करि हो कर करतार कुरणे तुनां इम कहियो । घणी तोइ एक एकोइ घणी गोविंद तुचुहु गमा। देख सवाद सुख दुखरौ तु निसवादी त्रीकमा ॥१३॥ निसवादी नरसिघ नमो तुना निसवादी । कहि हुँ कासु कहाँ सरब प्राणद सवाही । विसन वेद अणवेद भेद अभेद भुगीजे । अंलखरूप प्रणरूप जाच प्रजाच जपीजै । अनाथ नाथ अवररण वरण केई थोक नकरण करण । गुरगरूप ग्यान निरुगुण नरिदि समरि जीव असरण सरण॥१ना
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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