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________________ अथ गुण ज्ञान चरित्र लिख्यते कवित्त ॥ देवी दे वरदान ग्यान रीजे गुण गावा। भाखा सहि भागिवंत विहद हथ अरथ वणावा । तू मोटी महमाइ धरम धरि परि धरणी । वघ वाणी दै वैरण, कृपा करि हे कुडकरणी। करि सरस जोड़ रूपक कहा, त्रिविध जेम दुत्तर तरां । ऊधरां आप इनि, ऊधर, अनत तणो जस उचरा ॥११॥ अनंत अनत सहि अनत, अनत पौरिस पराक्रम । अनंत एक अनेक, अनत बह भांति बळाक्रम । अछती छतो अनंत नाम विरण अनत निरुगुन । गुण समपी गौरिजा गौरि तु विना नुहै गुण । अहि अमर रुखेसर नर असुर पहचि तुझ दाखं प्रघल । हु महिरिवण माया हिमै वइण मुझ दीजै विमल ।।२।। विमल कवेसर विले साधु सुखदेव सरीखा । वालमीक जैदेव नाम नरहर कवि नीका । विले दास वाणार सुकवि गोदड गुर मेरा। ग्यान चरित गाइनी एक एका अधिकेरा। ताह माहि ले अधिका उतिमि ग्यान रूप गाहैडि गडा। वारहट अन रिषि बरावरि वेद व्यास ईसर बडा ॥३॥ ईसर इमि आखीयो मुकद मोटी अति मोटी। अनत पार अपार त्रिविध त्रोटो नह त्रोटो। तोवह बार हजार करै सहि नाम अकिरिता । अलख तूझ आदेस कोडि आदेस करता।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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