SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८ । मू डाळी (३४)--श्री गजानन । मेस (६०)-शेपनाग । सूका (६८) सेहरा (६६)मूनो (४८ --शून्य, खाली। सैरण (६२)—सजन । मूझ (४४)-दिखाई देता है, देखता है | संरणला (१९)-संणी नामक वेधा मूप-कना (१६)-वडे-बडे कानो वाला चारण की पुत्री जो देवी नूप (१३) - सूर्पनखा का अवतार मानी जाती सूपनखा (५६)-शूर्पपणखा है। पीरदान लालस की सुर (३६, ६८)-सूर्य, वीर, वहादुर । आराध्यदेवी थी। मूरज्या (३२)--सूर्या, सूर्य की पत्नी | चैदहे (३७, शरीर सहित । मूरिजि (४७)—सूर्य सैतान (३२)--शैतान, असुर । मूरिति-पाय (४४)-पवित्र शक्ल का | मैनीछर (२१)–शनिश्चर । पाक-सूरत। । सोढी (१५)-पंवर वश की गोढा का मे (३, १६)-वे, सव। राजपूत । मेख ( ८६, ६९)-इस्लाम धर्म के | सोम (३९)-चन्द्रमा । आचार्य, पैगम्बर मुहम्मद के | मोरम ( १० स० सुरभि )-सुगध, वगजो की उपावि, यवनो के महक । मुस्य चार वर्गों में से प्रथम सोरी (७५)--सुखी, आराम मे । सोळ (६३)-सोलह । नेम (२५, ३६, ६२-गय्या सोवन (३१)नेत (३२, ३६, ६४, ६६)-श्वेत सोहागण (१५,- सववा, शोभाग्यमेल (११, ६२)-ट्वेत रग का वती। घोडा, वि० वि० कहते हैं कि | सोहिया (८०)-सुशोभित हुए । जव कल्कि अवतार होगा वह / सौरी (३१) श्वेत घोडे पर नवारी करेगा? | श्रव (२७)-सर्व, सव । मनिल (८४)-बैत थव ()-सर्व, सव। नारसी (!) श्रिया (६७)-श्री, लक्ष्मी। मेव (३४)-नेवा श्रीय (४८)-श्री रोप (१६)ोपनाग। | श्रीरंग (७५)~-विष्णु का एक नाम ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy