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________________ [ ७७ ] वाहर (९५)-रक्षा? | विढण (५८)-लडने को। वाहरू (२८, ७९)-रक्षक । विढिस (६६) युद्ध करेंगे, भिडेंगे। वाहला (८७) - नाला। विढे (५२, ६६) युद्ध किया, युद्ध वाहि (१०३) करके। वाहिरी (७०)-रहित, विना।। विण (४८, ६३)-विना रहित । वाहिळिया ११३)- नाले । विणयो (३५)वाह (४२) --प्रहार करिए। विरिण (३६, ४६, ५०)–विना, वाहै (६६)- प्रहार करते हैं। रहित । विंद (३६)-स्वामी, पति । | विणियो (१४, ४७)-वन गया, वना विदया (३६)- नमस्कार किया, एक विरिणयों (१४, ५०, ६३)-वना, वन गोपी का नाम भी विधा था। गया। विंदावन (२४)-वृन्दावन । विणे (६) हुआ। विमापी (७०)-व्यापी, वह जो | विद्रवाँ (६६) - विदर्म देश जहां का व्याप्त हो। राजा रुक्नरिण का पिता विकाइ (३६)-विक जाते हैं। भीम कथा । विक्ष (७८, ६६ १००)-विषय। विधत (२१)विगताळी (५८)-अद्भत चरित्र | विधांसह (६)--विध्वस किया। वाला। विधाँसण (५, ५६)-विव्वस करने को। विगन्यान (४६)-विज्ञान ।। | विधांसी (२)--विघ्वस किए । विगति (७९)-वृतान्त । विनाइक (३४)- गजानन । विघन (८१)-विघ्न । विनाइकि (१) - गजानन । विच (४२)-मध्य , विभाडी (८१)-मार डाली । विचाळे (५८, ७१)-बीच मे। | विभाडे (५२)- मार डाला, महार विचि (४३, ४५, ४८)-मध्य मे। किया। विभीपण (५७)-विभीषण । विजराज ( ६६, १०३ )-वृजराज, | } विभूति (७६)--दिव्य या अलौकिक श्रीकृष्ण। शक्ति। विडग (८६)-वोडा । विमल (३८, ४६, ६६, ७८, ८६)विडगा (३१)-घोटो। पवित्र, निर्मल, उज्ज्वल ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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