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________________ विस्मृत नही कर सकता। "हिंगलाज रासो' में देवी के विभिन्न रूपों की वह भोजमयी भाषा मे आरती उतारता है। 'ज्ञान-चरित' में भगवान के विभिन्न अवतारों का उल्लेख करते हुए वह जैनियो के 'अरिहंत' और 'रिषभ' को भी नमस्कार करता है। इतना ही नहीं उसने मुसलमानो के 'अला' को तो अपने काव्य मे पचासों बार स्मरण किया है । वास्तव मे कवि के लिए तो ये सब उसके प्रभु के ही अलगअलग नाम हैं। इसीलिए वह यम-पाश से मुक्ति के लिए 'अला' की ही आशा रखता है अला तुम्हारी आसरौ, अला तुम्हारी आस । परमेसरजी पालिज, पीर तणा जम पास ।। -परमेसर पुराण, दूहा सख्या २० इसी प्रकार कवि ने 'परमेसर पुराण' मे अनेक भक्तो का श्रद्धापूर्वक स्मरण किया है। यद्यपि ये सभी भक्त किसी एक ही सम्प्रदाय या विचारधारा के नही है पर अध्यात्म और धर्म के प्रति उन सव की श्रद्धा है। सभवत. इसी कारण पीरदान ने भी अपने भावो की सुमनांजलि उन्हे अर्पित की है। इन भक्तो मे कई ऐसे भी हैं जिनके बारे मे विद्वानो को ज्ञान नही है। कवि ने अपनी रचना में उनके नामों को सुरक्षित रखकर हमारे सास्कृतिक और साहित्यिक जीवन की विभूतियो को लुम होने से बचाया है । पीरदान के काव्य मे यद्यपि ज्ञान और योग की चर्चा है पर उसका हृदय मूलतः एक भक्त का हृदय है। इसीलिए वह उसके सगुण और साकार रूप पर ही अधिक मुग्ध है । अन्य अवतारो की तुलना मे उसने राम और कृष्ण का अधिक विस्तार से वर्णन किया है । शासकों द्वारा अपने युग के समाज पर अत्याचार होते देख तथा गौ-ब्राह्मण की दुर्दशा देख उसका भक्त हृदय अपने प्रभु से निवेदन करता है कि वह शीघ्र ही अवतार लेकर घरती का वोझ दूर करे। अपनी करुण
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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