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________________ [ ४७ ] (४१, ४३, १. नासति आत होते हैं। १, नही नावै (२०, ३५, ३६)-नही आती | निति (४१, ४३, १०३)-नित्य है. नही प्राप्त हो, नही निघ (88)-निघि प्राप्त होते हैं। निनाम ( ३६ )—जिसका कोई नाम नासति (४८)-१ नाग होता है, न हो। २ जिसका अस्तित्व नही, | निपट (४१)-बहुत नास्ति । निपाइयो (९६)-उत्पन्न करेंगे, नाह (४६, ६३, ८२, ६२)नाथ, निप्पन्न करेंगे। स्वामी, इसे नर-नाह | निपाया (२०, २१, ५० )-उत्पन्न लिखना ठीक है। किए। नाहरू (७६)-नाहर, सिंह। निवळा (४८)-निर्वलो, अशक्त । निकलक ( ८७, ३, १०, ३३, ३६, | निवळी (७०)—निर्वल, कमजोर । ४४)-निप्कलक, पवित्र । नि* (५६. ५४. ७७. निया निकलकी (५)-पवित्र निमध (८१)—वाँध, घाट । निका (४८)-श्रेष्ठ, उत्तम, पवित्र।। निमस्कार (२७)—नमस्कार निकीयो (४७)-नही किया निर्मिघयौ ( )-रचा, बनाया। निको (४१, ४८, ४६)-नही कोई, निमिणि (१) निमिरिण (८१) नमस्कार, नमन । श्रेष्ठ। निमिष (५४)-निमिप, जरा, किंचित । निगरव (५७)- गर्व रहित विगुरा (११)-कृतघ्नो, गुरु का उप का उप- निमो (२३, १६, २०, २१, २४,३३, कार न मानने वाले। ३७, ४२, ४६, ५८, ७३, निगुरो (४६)-निर्गुण ८१, ८४, ६७, ६६, १००, १०१)-नमस्कार । निचिंता (१६)-निश्चित निजरि (५३)-नजर, दृष्ठि । नियावा (३०)-१ न्याय २ न्यायनिजार (५, १०, १२, फा० निज़ार) कारी। नज्जार, दर्शन, दीदार। नियारि (१६)--निगाह। निजारसाह (९८)-निजारसाह निरकार (३६, ६८, १००)-जिसका निजारी (३३)-अविनाशी कोई श्राकार न हो, ब्रह्मा निजि (३६, ४४)-निज, स्वयं । । विष्णु, प्राकाश।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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