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________________ [ १७ ] काई (२०)-कुछ । काळ (२०, ६८)-मृत्यु, मौत, यम । काइ (३२, ४६)-क्या। काळ-काळू (२७) यमराज का भी काइम (९, १०, ११, १७, २४, ६४, यमराज। १०)-दृढ, स्थिर । कालरा (३१, ८६)—कोयला, नमकीन काइमा (११, ६६)-देखो, काइमि । भूमि जहाँ पर पपडी अधिक काइमि (९, ११, ८४)—वह जिसका उतरती हो तथा वोने पर कुछ अस्तित्व बिना किसी दूसरे की भी पैदा नही होता है। सहायता के बना रहे । कालिंग (८९)-असुर का नाम । काइमी (६८)-दृढ, अटल, ईश्वर । काळि (५३)-काल, मृत्यु । काई (३६)-१ कोई, २ कुछ । कालीग (३२)-असुर का नाम । काछिवा (८०)-कश्यपावतार । कालीगना (८७)-असुर का नाम । काज (५६)—लिए। काळीगा (१३)-एक असुर का नाम काठी (७३)-दृढ, मजबूत । जिसे कल्कि अवतार ने मारा कादि (७५)-निकाल दे। था, हिंदवानी नामक लताफल - काढी (९५)-निकाल ली। जो तरवूज से मिलता जुलता कान्हईयो (६३, ७६) श्रीकृष्ण । होता है। | काळी (१)—कृष्ण सर्प । कान्हड (१, ६०)-श्रीकृष्ण । काळी (२, ७०)-पागल, उन्मत, कान्हुआ (३३, ३६)-श्रीकृष्ण । कलुपित। कापडी (१३, ६५)-एक प्रकार के काल्हे (७२)—पागल। सन्यामी याचक विशेप, भाटो काल्ही (१००)-पागल । की एक शाखा। कासिपि (८०, ६६)-कश्यप का, कापि (५६)-काटकर। कश्यप के। कापिरिस (१३) कापुरुष, कायर । कासु (३६, ७६, ८८)-किससे, क्या, कापै (३०)-मिटा दिया, नाश किया। कमे। कामडा (७६) काम, कार्य। कासु (४०)-क्या, किससे । कायम (८६)-ईश्वर। कासू (७, २६, ७०, ७२, ८३, १०३)कारण (५२)-लिए, निमित्त । कैसे, क्या। कारण (५६)-लिए। } काह (३६)—क्या।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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