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________________ [ ६ ] अविगत (३४,४३,५३)--वह जिसकी | असराण (८४, ८७)-असुर, दैत्य । गति (लीला) का पार पाया | असर (१६)-असुर, राक्षस । न जा सके। असीनि (४६)--अशीलता। अविणाम (२७) - वह जिसका नाश असोक (५७)--अशोक वृक्ष । न हो, अविनाशी। प्रहर (५१)-अधर, (नीचे का) हो । अविरणास (४६,५०, १०३)-अविनाश अहल (९८)-हिलना, कांपना, जोर पडना । अविणासी (२६)-अविनासी। अविद्या (३५)-अज्ञान, मूर्खता। | अहारिणि (१९)-पाहार करने वाली अहि (२०,३६,३८, ४६, ६०, ७५)अविघूत (५४, ६६)-अवधूत, सन्यासी, नाग, सर्प। मस्त फकीर । | अहिकार (४२, ४३)-- अहकार। अविसि (७८)-अवश्य । अहिनाण (१०२)-चिन्ह, निशान । अविल (३५, ५२)-प्रखड । अहिवेलि (८६)- नागवेल । अविलि (७४, ८०)-धारा प्रवाह । अहिला (५५, ६७, १०३)-गौतम अप्टंग (४३)-अष्टाग। ऋषि की पत्नी अहिल्या। असख (१६)-असंख्य । अहिल्या (२, ४४, ८१, ८८)-गौतम असख (असंख) (४७)-असख्य । ऋपि की पत्नी अहिल्या । अमटंग (३५)-अष्टाङ्ग । ग्रही (५३)- शेषनाग । असट-कमल (१०१)-अष्ट कमल । अहीर (६३)-(सं० आमीर), वह योग के पकमल तो हिन्दी मे जाति जो गाएं, भैसे रखती भी मिलते हैं परन्तु राजस्थानी है तथा उनका दूध वेचने का मे पाठ हैं। काम करती है, ग्वाला। असतूल (४६) स्थूल । अहीरिया (६०)-अहीर का तुच्छताअसन (७०)-भोजन करना, भोगना। सूचक शब्द । असमेघ (१०२)--अश्वमेध यज्ञ। अहै (३२)-यह, है। असरण (४०)-जिसका कोई शरण | अहो-निस (३)-रातदिन, अहर्निश । नही। असरा (१२, ८७, १००)-असुर, पागणे (२६)-प्रागन, प्राङ्गन । आगळी (८६)-अगुली। राक्षस।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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