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________________ [ १२२ ] निनारणंय सो लग चीर नरेह, लिया दुसासण दाव लहेह । अजाँ पचाळीय गूंघट प्रोट, करै हरि रखीय कपड़ कोट । कहै दुसासरण कारण कोइ, अजा ही नगीय नारि न होइ । तंणौ घणसाम वणे वप ताण, इसी निज नाथ तणी अवसांण । जंग जंग साजण दूजण जोई, हुयौ दलगीर सगा गुर होई। मिजालस मंडीय माहो मांहि, चत्रभुज आयो प्रोसर चाहि । भगता भीड़ पड़ी तब भीर, सदानो आयो साम सरीर । कहै इम राजभा सह कोई, हरी विरण में कुरण कारण होई । लोपै कुळ कुरण पचाळीय लाज, रहावरण सामरथी विजराज । पचालीय चीर परम पसाई, अखूट अतूट हुमा इळ माहि । हुया दुसासन थाकिय हाथ, न थाकी गंवीय गोकळनाथ । दजोवरण दूरि स झूर सदत, कहै इम भीखम काल कयत । हम घरिणयाइ हुईस हद, सहसबळी बहसै वह सद । तिसौ छ पै कर नाखिस तौड़ि, मरघड़ नाखिस हाड मरोडि । दुसासन दूरि हिम दुसमन, पितामहि भीखम ध्रोण प्रसन । भली जरणी कीय पारथ भेम, तवं तारीफ पितामह तेम । साचा सूसाचो सामि सुरत्त, विसंभर राखण संत वरत्त । सती चौ सत रहै रवि साखि, रहै जिम राखण हारै राखि । किसंनाइ जप वाप किसन, भली परि राखीय त्रेण भवन । किसन किसना स्याहित किव, दजोवण मुख न जोवरण दिध । भगता भीड पडी भगवान, किया नह अखीय आडा कान्ह । किया नह अखिय प्राडा क्रग, जसोदानदन जीवन जग । देवकीय नदण दीनदयाळ, छमा छळ रखरण कान्ह छोगाळ । पंचालीय राखिय लाज़ परम, सवाई राखै तेम सरम । , जपै हरिदास अजपाइ जाप, मोरी पति राखिय मां बाप । इति श्री छभा प्रव सपूर्णम्लिखत लालस हरिदास । वाचे तिनै राम राम वाचिजो जी। 1 श्री । समत् १७७"मिती फागण वदी १० । श्री।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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