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________________ { ११८ ] कहां करतार सकूड़ म कथि, हिम इण ताळ चड़ी इण हथि ।' जप दुसासन होइ जिकोइ, सभालेय उपरि सापर सोइ ।। अंमीण ऊपरि छ धुरि आज, रवि तळि एक अछे ब्रिजराज । अछ विजराज भगत अधीस, विसव आधार विसवा वीस११ । उवारै तुझ इसौ कुरण आज, रामां थळ छोड़ि गियौ ब्रिजराज । दुनो सोहि देखे धोळेइ दीह, बीहावं प्रबल एह अबीह । पचाळीय पाकुळ व्याकुळ पांरिण, रूठी दुसमण दजोपण रांण । गमे पति वैठा धोरण गगेव, देखे सिर ऊपर सूरिज देव । हुवंता देखि सती परि होल, हुयो हथरगापुर हालकहोल। पचाळीय देखे एहा पार, विखो१२ आइ वणे इण वार । विणठो दाउ हम विसलोइ, हरी काइ प्रारण मुगति न होइ। प्रमु कीय पारथ भीम पचार, हथौहथि दीध जिन्हा हथियार । कहै पचाळीय काह करेस, दमोदर मदर ओखामडळ देस । हुरमति इजति रखणहार, विसंभर वेग लडो इण वार । अविसर हाजिर नाहीय आज, रुखावर वेग लडी विजराज । करै कुरण सार पखै करतार, विसन अधार जिसी तो वार । पंचाळीय जपै जीवन प्रांण, अहो प्रम तुझ तणा अविसारण । निसु ग रखे लज लोप नाथ, सुता सिर ऊभा सामि सनाथ । रावा त्रिभुवन छपना राउ, अम्हीरण ऊपरि सापरि पाउ ।' पथारीय देख देखे पथ, हुई हव कथ-अकथा हथ । धरै कहि केम पंचाळीय धीर, विलगौय चीर दुजोवरण वीर । पंचाळी खालीय पडव पाथ, अनाथ हुई हैं नाथ अनाथ । सुता सरणागति साम सरीर, विसभर वाहर धारय वीर । अम्हां अबळा बळ तोरौ आज, रहै निज लाज सोतो विजराज। निरवळ नारि पुकारै नाथ, सदुखा साद सुरणे ससमाथ । समै तिरण सूती सेझ संमारि, मुकंद मुरारि समद मझारि । गोमां उपकंठ समदा गांम, सुतौ श्रीय सु दरि मिंदरि सामि । ११-ईस, १२-विमो।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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