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________________ [ ६३ ] वनवासी विसन विरिणयो, जिके से संसार जरियाँ | गोहि अगिल जनमि गिरिणयो, भूधरौ भरियो । हे दारणव व्याधि हरिणयौ, खरां त्रिसरा मूळ खरिणयो । लाछि वर सिर सूप लुगियो, सात्रवे सुणियों ॥ ३ ॥ सवळि दांगवि हरी सीता, मुरह भुवरणा तरणी माता । जीव एक जटाइ जीत्या, प्रभू रा प्रीता । वरसि के वन माहि वीता, ग्यांन गोविंद रूप गीता । राकसा रा नेस रीता, श्रातम ग्रजीता ॥ ४ ॥ परम पद सुग्रीव पाया, कीच कटके वळि काया । लकारै कांगरे लाया, हरणमत गोविंद रामरण गुड़ाया, जीपिया दसरथ अयोध्या मे धरणी आया, ब्रह्मा ळाछवर रो नाम लीजे, कोई उत्तम काम दीजै, ग्रन्न दुरवळा ने कमरण वीजे, प्ररणांम पीरदास .. भूधरी हवे . रामचन्द्र वेल नू कीजै, हलाया । जाया ॥ वधाया ||५|| कीजै । G भीजे ॥ • री "जै । जै ॥६॥ गीत | लालस पीरदान रो कह्यो । घर रे धर ध्यान धरणी धरणीधर, अति अवतिरची फिरियोस । परहरि रे परहरि रे प्राखंड, हरि हरि कहि रे हरि रा हस ||१|| किंहिक भजन करि किहिक दया करि, किंहिक धरम करि हुने कल्याण । किंहिक सरम करि जीव नरम करि, इतौ थूळ काइ हु जांण ॥२॥ राजा राम भजन साराजी, भजियां इज देखिस भगवान । ग्रार्इ पहर घरणी उळावे, कान्हईयो कान्हइयो कान्ह ||३| गोकळ माहि खेलियो गोविंद, आप सरीखा किया अहीर | कहती रहे तिकै ना कवियण, परमेसर परमेसर पीर ||४||
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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