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वनवासी विसन विरिणयो, जिके से संसार जरियाँ | गोहि अगिल जनमि गिरिणयो, भूधरौ भरियो । हे दारणव व्याधि हरिणयौ, खरां त्रिसरा मूळ खरिणयो । लाछि वर सिर सूप लुगियो, सात्रवे सुणियों ॥ ३ ॥ सवळि दांगवि हरी सीता, मुरह भुवरणा तरणी माता । जीव एक जटाइ जीत्या, प्रभू रा प्रीता । वरसि के वन माहि वीता, ग्यांन गोविंद रूप गीता । राकसा रा नेस रीता, श्रातम ग्रजीता ॥ ४ ॥ परम पद सुग्रीव पाया, कीच कटके वळि काया । लकारै कांगरे लाया, हरणमत गोविंद रामरण गुड़ाया, जीपिया दसरथ अयोध्या मे धरणी आया, ब्रह्मा ळाछवर रो नाम लीजे, कोई उत्तम काम दीजै, ग्रन्न
दुरवळा
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कमरण वीजे, प्ररणांम
पीरदास
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भूधरी
हवे . रामचन्द्र
वेल नू कीजै,
हलाया । जाया ॥
वधाया ||५||
कीजै ।
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भीजे ॥
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गीत | लालस पीरदान रो कह्यो ।
घर रे धर ध्यान धरणी धरणीधर, अति अवतिरची फिरियोस । परहरि रे परहरि रे प्राखंड, हरि हरि कहि रे हरि रा हस ||१|| किंहिक भजन करि किहिक दया करि, किंहिक धरम करि हुने कल्याण । किंहिक सरम करि जीव नरम करि, इतौ थूळ काइ हु जांण ॥२॥ राजा राम भजन साराजी, भजियां इज देखिस भगवान । ग्रार्इ पहर घरणी उळावे, कान्हईयो कान्हइयो कान्ह ||३| गोकळ माहि खेलियो गोविंद, आप सरीखा किया अहीर | कहती रहे तिकै ना कवियण, परमेसर परमेसर पीर ||४||