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________________ काया डिगल गीत ॥ गीत अठताळो ।। लालस पीरदान रो कह्यिो कायम आवसं एक कळह करिस, घरिण नीली रूप धरिस मचीणा रौ धणी मरिस, चोरिण ना चरिसै । सही पातिग विना सरिस, भूत भूडी डंड भरिस । तुरत बाभरण गाइ तरिस, मेघडी वरिस ॥१॥ बोडिस कालिंग टल्ला, हिमैं हुइस हळहला। महमहरण एकल मल्ला, सात्र वासला । आविसे रहमारण अल्ला, ढळिकिस अपार ढला। प्रमेसर वांधिसै पला, भूधरा भला ॥२॥ धातिस तोफान घांणी, पीलिसे काढिसै पाणी। प्राखियो सारंग प्राणी, सूरिज्या राणी । अगै काइ रीछडी आगी, भगत वछळ वात भारणी । जादिवै री अकलि जारणी, मेघडी मारणी ।। ३ ।। मस ईसा अली मू गळ, सेख साथ मीर सबळ । पीरजादा पडित प्रघळ, आदिमा उजळ । दईव करिसै एरसा दळ, विडग सेत इ नेक विमळ। चढे आलम पृथ्वी चळ चळ, किलग रो कमळ । ग्यांन साथै भगति गाजी, वडी वाउल पछै वाजी। भूधरा करि देत भाजी, राक सहि राजी। तू हिज़ रोटी दीये ताजी, वहत राखै अमा बाजी। पीर आगिम कहै प्राजी, साधुनां साजी।।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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