SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ८६ ] आक नीबा तरगो धाख ग्रघ केरड़ा, विरिरिण नीली हुइ धानरा ढेरडा । साहिव तर सत आठ सहिनारणीया, 1 फळी वह भाति हि वेलि फुलाणिया । चदमा तरणी सहि मेहणो चालियो, मेघ रिषि त घरि प्रमेसर माल्हि । प्राहणो हुआ साधां घरे पिताई, कालरा मांहि ऊगा कमळ किताई । हाथिरणी सादि रो दूध पालट हुग्रो, कहै ससि लोक श्रौ समद इमिरित की । थले हीरा हुआ थले मोती थिया, लाछिवर तरणी हव नांम मरदा लिया । वाभरणा तर घरि नूर वरते वहत, जिसे कलगना आज चडिया भगत । " आज उजेरणमां उभै दळ ग्राहुड़, खरा भड़ रायरा सँग आया राग रहमाण सुरतागं पुरिषा रतन, किलंग रे ऊपरा चालि आयो किसन । हरिखि हुड़ जोगरणी ताम नारद हसे, कांइमे त्रिधारी खडग कडिया कसे । वाजिया घनख सुर संख वह वाजिया, रिणि पुड घूजिया गयरण पुड गाजिया । धरणी रे हुकम सा वहत मादल धुर्वे, हुआ वरघू सवद देव दाराव हुवे | सालले सीधूश्री राग सरणाईया, भलाई आज भारथ करो भाईया | मेह मेहा सरिसि आवि जूटा मोहरि, वारण वारणा सरिसि वोटिया वहादरि ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy