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________________ पातगि पहार ॥ दूहा ॥ प्रति अनूप प्रखर प्रविलि, सरसति करौ पसाउ । हीगलाज मुप्रसन्न हु, पछिम तरणा पतिसाह ॥ १ ॥ समति समापे सारदा, देवि दिया रो दन । पुरिषोत्तम रौ जस परणां, सरसती सुप्रसन्न ॥२॥ प्रोथी साहिब उपना, भोमि निमो भाद्र ेस । पीरदास लागे पगे, ईसारणद प्रादेस ॥ ३ ॥ गुण 1 धन धन जीवा राधिरणी, साहिबि तु मुंना तुं वाल्हो मुकर, ईसरजी तुना भजि भजि त्रीकमा, ऊत्ररिया अरणपार । भिरि रे भिरि भगवत भिरिण, पिण पातिग पहार ॥ ५ ॥ माहव मोहरण महमहरण, कहि केसव करतार | करणाकर केवल किसन, पातिग तरणी पहार ॥ ६ ॥ विसन देव पूरण ब्रहम, नरहर सरव निवास । अतरजामी प्रतिमो नाराइरिण अघ नास ॥ ७ ॥ पारि उतारे पाप ना, ग्यान वसारे ग्राम । हेकोड तारे हसना, नाम ॥ ८ ॥ प्रजामेल अमरापुरी, वसियो थारे वास | -सवरी गिनिका सारिख, पहिते गोविंद पासि ॥ ६ ॥ सिवि संकर ना सापियो, दीयो ब्रहम ना दान । नाम तुहारौ नारीयरण, भुजरण दीयौ भगवान ॥ १० ॥ साहिवि तोना समिदिसे, आठइ पोहर अलाह । ऊ उधारे प्रतिमा, श्री जोइ समद अथाह ॥ ११ ॥ नाराइण रो सुभिवारण | री आरण ॥ ४ ॥
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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