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________________ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि सकल मनोरथ मालिका, तइयइ सफल करेसन रे ॥१॥ धरम जागरीया जागतां, समरंता गुण ग्रामन रे। पाणी बलि एहव रह्य उ, माहरउ मन परिणामन रे ॥२॥ध० अमीय समारणा बोलड़ा, बारह परषद साथन रे। . साभलि भव थी ऊभगी, व्रत लेइम्प्र भु हाथन रे ॥३॥१०॥ जनम लगइ पासइ रही, भगति करिसुनिसदीसन रे । तप जप सजम पालिसु , मन सुध विसवा वीसन रे ॥४॥ध० आपण पइ जइ गोचरी, आणिसु सुट्ट आहारन रे। साधु सहु नइ साचवी, देइसु देह आधारन रे ।।५।।१०।। च्यारि करम चकचूरि नई, पामि केवल नाणन रे। श्री 'जिनराज' पसाउलइ, चढिस्यइ बोल प्रमाणन रे॥६॥ध० (५) श्री सुजात जिन गीतम् ढाल-महिमागर नीजाति, आज निहेजो रे दोसइ नाहलो तू गति तू मति तू साच उ धणी, तू बधव तू तात । तुझ सम अवर न को मुझ वालहउ, समरू सामि सुजात । १ तू ० हरि हर ब्रह्मादिक आराधता, न टलइ गरभावास । तिण इण भव कीधी मइ आखडी, सीस नमावण तास॥२॥तू ० जे पोते परनी आसा करइ, ते स्यू पूरइ आस । संतोष्यउ पिण रांक न दे सकइ, अवचल लील विलास।३।तू ० अतरगत मन सुआलोचता, ए कीघउ निरधार। , तुझ विण देव न को बीजउ अछइ, शिवसुखनउ दातार ४ातू . करउ महिर भव जलधि लहिर थकी, प्रवहण सम 'जिनराज'। जउ कर ग्रहि सेवक नइ तारिस्यउ,तउ हिज रहिस्यइ लाजश्तू
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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