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________________ बहुत जतन करि राखीयइ, अत पुराणी होइ ॥१॥ सीवराहारउ डोकरउ रे, पहिरण हार युवान रे। . चउथउ घोव खमइ नही हो, मत कोउ करउ रे गुमान ॥२॥ (पृ० १०३) (६) मन रे तू छोरि माया जाल । भमर उडि वग प्राइ बइठे, जरा के रखवाल ।। (पृ० १०७) उत्प्रेक्षा:(१) तिण रंग लागउ माहरइ, जाणे चोल मजीठ (पृ०४४) (२) श्रावण मइ प्रीयउ सभरइ, वूद लगइ तनु तीर (पृ०४५), लोक प्रचलित उपमानो के प्रयोग मे कवि बड़ा कुशल है। जहां उसे अपने मत की पुष्टि करनी होती है वहाँ वह या तो कोई न कोई दृष्टान्त देता है या लोक प्रचलित उपमानों का प्रयोग कर विषय को एकदम स्पष्ट कर देता है । यथाः(१)घर अंगण सुरतर फल्यउ जी, कवरणे कनकफल खाई। गयवर बांधउ बारगइ जी, खर किम पावइ दाइ।(पृ०९) (२) वोवइ पेड़ पाक के प्रांगरण, अव किहाँ थइ चाखइ (७४) (३) पइठउ श्वान काच कइ मदिर, मूरखि भुसिहि भुसि मरइ (९८) (४) कहा अग्यानी जीउकु गुरु ज्ञान वतावइ । कबहु विष विषधर तजइ, कहा दूध पिलावइ ॥१॥ ऊपर ईख न नीपजइ, कोळ बोवन जावइ । रासभ छार न छारि हइ, कहा गंग नवावइ ॥२॥ काली ऊन कुमारणस, रग दूजउ नावइ । श्री 'जिनराज' कोऊ कहा, काकउ सहज मिटावइ ।।३।। भाषा की शक्तिमता के लिए कही कही लाक्षणिक प्रयोग भी किये गये हैं(१) दोउ नयण सावण भादु भये, ऐसी भांति रूनउ (८५) (२) जोवन वसि दिन दसि झूठी सी, हइ छबि छिन छिन छोबइ ११२ (3)
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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