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________________ (३) कूडल को सोभा कह रे लाल, रवि शशि कइ अणुहारि (पृ ५३) (४) जी हो तृण जिमराज रमरिण तजी होजी लीघउ सज़मभार(७३ (५) फल किपाक समान देखता हो, देखतां सहूंजन नइ सुख सपजइ हो (६२) (६) पर कर परसेवो चल्यो, मांखण जेम सरीर । चिहुँ दिसि परसेव चल्यो, जिम नीझरणे नीर ॥३॥ (१३३) रूपक:(१) मन मधुकर मोही रहयउ, रिषभ चरण अरविंद रे । कडायउ ऊडइ नही, लीगउ गुण मकरन्द रे ॥१॥ (पृ. १) (२) सूर ने जिस प्रकार 'अब मैं नाच्यो बहुत गुपाल' सांगरूपक बाँधकर विनय भावना प्रदर्शित की है उसी प्रकार जिनराज सूरि ने सांगरूपक बांधकर अपनी मोह-दशा का मामिक चित्र खीचा है। यथाः 'नायक मोह नचावीयउ, हुनाच्यउ दिन रातो रे । चउरासी लख चोलणा, पहिरया नव नव भात रे॥१॥ काछ कपट मद घू घरा, कठि विषय वर मालो रे । नेह नवल सिरि सेहरउ, लोभ तिलक दे भालो रे ॥२॥ भरम भुउरण मन मादल, कुमति कदाग्रह नालो रे । क्रोध करणउ कटि तटि वण्यउ, भव मडप चउसालो रे ॥३॥ मदन सबद विधि ऊगटी, अोढी माया चीरो रे। नव नव चाल दिखावतइ, का न करी तकसीरो रे ॥४॥ (पृ० ८६) (३) सोभा सायर वीचि मइ रे लाल, झील रहयउ भन मीन । तइ कछु कोनी मोहनी रे लाल, नयन भऐ लयलीन ॥५॥ (पृ० ५३) (४) जोवन तरुणी तनु रेवा तट, मन मातंग रमायउ (६२) (५) पंचरग काचुरी रे बदरग तीजइ घोइ । . . (क्ष)
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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