SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कई कवि हो गए हैं। आपके शिष्य भाव-विजय के शिष्य भावविनय के शिष्य भावप्रमोद रचित सप्नपदायी वृत्ति, और प्रजापुत्र चोपई प्राप्त है । श्रापके एक अन्य शिष्य मानविजय के शिष्य कमल तो बहुत अच्छे कवि थे और उनको बहुत रचनाएं प्राप्त है। कमलह के शिष्य विद्याविनाम और उदयसमुद्र भो अच्छे विद्वान थे । प्रस्तुत ग्रंथ का मूल संशोधन मेरे सहयोगी भ्रातृपुत्र श्री संवरलाल नाहटाने किया है और साहित्यक अध्ययन प्रो० श्री नरेन्द्र भानावतने लिखा है । म्रतः ये दोनो ही मेरे आशीर्वाद भाजन हैं । ग्रंथ प्रकाशन में प्रत्यत्रिक विल होजाने से कठिन शब्द कोश देने की इच्छा होते हुए भी नही दिया जा सका। - अगरचंद नाहटा (#)
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy