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________________ हैं उसी सिलसिले मे आपने यह महत्वपूर्ण ग्रथ अपने अध्ययनार्थं लिखा हो । १३००० श्लोको का यह महत्वपूर्ण तर्क शास्त्रीय सटीक य थ की प्रति पूर्ण रूप मे मिली हैं। इसलिए मूल ग्रंथ का क्या नाम है श्रोर टीका कव एवं किसने बनाई, निश्चय नहीं किया जा सका । पर इन सब बातो से यह निश्चित है कि जिनराजसूरि जी बहुत बड े विद्वान हुए हैं । छोटी २ राजस्थानी रचनाओं के अतिरिक्त प्रापने राजस्थानी काव्यो का निर्माण भी आचार्य पद प्राप्ति से पहले ही शुरू कर दिया था । जंन रामायण की कथा का आपने राजस्थानी काव्य के रूप मे इसी समय निर्माण किया था। उसकी एक अपूर्ण प्रति कोटा के खरतरगच्छ भ डार मे प्राप्त हुई है । २८ पत्रो की यह प्रति उसी समय की लिखी हुई है, पर अत मे प्रशस्तिकी ढाल नही है, इसलिए इसकी रचना कब एवं कहां की गई, जानने का साधन नही है । आचार्य पद प्राप्ति के अनन्तर आपने चोवीसी, वीसी, घन्ता शालिभद्ररास, गजसुकुमाल रास श्रादि राजस्थानी काव्यों की रचना की, जो प्रस्तुत ग्रन्थ मे प्रकाशित हो रहे हैं । इनके श्रुतिरिक्त कयवन्ना रास, पार्श्वनाथ गुरणवेलि, प्रश्नोत्तर रत्नमालिका वालाववोध, नवतत्वटव्वार्थ, आदि आपकी श्रोर भी रचनाएं हैं। जिन्हे हम प्रयत्न करने पर भी प्रस्तुत ग्रंथ के संपादन के समय प्राप्त नही कर सके। प्रश्नोत्तर रत्नमालिका, बालावबोध और नवतत्वटब्बा संस्कृत पोर प्राकृत रचनाओ के राजस्थानी गद्य में लिखे गए संक्षिप्त विवरण हैं । यह विवरण किसी श्रावक या श्राविका को वोध कराने के लिए रचा गया है क्योकि मूल प्ररंथ संस्कृत-प्राकृत मे होने से उनके लिए सुबोध नही थे । 4 आचार्य श्री की सबसे बड़ी थोर महत्त्वपूर्ण रचना नंबधमहा. काव्य की ३६००० श्लोक परिमित वृहट्टीका है इसकी दो अपूर्ण " ( १ ) "
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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