SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२२ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि भवसायर तरवा भरणी, नित नित नमइ नरिंद ॥२॥ सुरगो वारणी सहगुरु तणी, ए संसार असार । इम जारणी मन आपराइ, आणि वइराग अपार ॥ ॥ विनयवत इम वीनवइ, सजम लेपु सार । मुझ अनुमति द्यउ मातजी. पामु जिम भव पार ॥शा मात कहइ सुरिण मानसिंघ, बारह मास उदार । सुख भोगवि ससार ना, विपम सावु व्यापार ॥५॥ ढाल-सिंधू १ मल्हार २ चांपलदे चित चोखइ इम कहइ रे, श्रावण मइ सुख स्वाद । बीजलड़ी चमका चिहुँ दिति करइ रे केकि करइ कल नाद ||चां०॥६॥ दादुर वादुर गहकइ गड़गडइ रे. मानु मदन नीसारण । पहिर्या पच प्रकार वसन धरा रे, खेलइ चतुर सुजाण ॥चां॥७ भला भला भाँदु मइ भोगवइ रे, भोगी भामिन स ग । कीन ना मइ कामी क्रीडा करइ रे, रस लुवधा अर र ग ।। चांसे सहिवा सही वावीस परीसहा रे, धरम घ्यान चित चंग । गिरिवर गहिर गुफा मइ गुण निला रे, गोपवि अंग उपंग ॥चांपा भधिक पाणंद पासोज मइ स पजइ वाजइ सोतल वाय । दीपतउ गयणगरा च द्रमा रे. भोगीजन मन भाय |चांग॥१०॥ पकज परिमल पसरइ चिहुँ पखे रे, नवलउ जागइ नेह । विरहरिण वनिता नर विरहाकुलो रे दाझइ अहनिसि.देह।।चां०११॥ धान नवा कातिक मइ नीपजइ रे, निरमल तिम वलि नीर । दीवाली परवइ दिन रली रे, चतुर वरणावइ चीर ॥चां०॥१२॥ पाहार निरंतर नीरस आविसई रे, उन्हउ उदक असार । दृषिण दूषित ते पिण ल्यइ नही रे, किम करिस सुकुमार ॥चां०१३
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy