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________________ श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई मन माहे भय सबलउ ऊपनउ रे, पापी नई तिण वार। पायउ तिम पाछउ वल्यउ र, आवइ निज प्रागार ॥४॥कु०॥ वेदन अधिको रिपि नइ ऊपनी रे, सहता दुक्कर जेह । मन चितइ नरकादिक वेदना र, आगलि केही एह ।।५।।कु०॥ परवसि पडीयउ प्राणी सहु खमइ र, गुण थोडउ तिरण बात । सइवसि एक घड़ी पिरण जउ खमइ रे, करइ करम नउ घात ॥६||कु०॥ सोमिल नउ दूषण तिल भर नही र, पूरव करम विसेष । मन माहे इम मुनिवर चितवइ र, धरइ न तिल भर द्वष ॥७॥कु० हाड़ परजलइ काठ तणी परइ र, चट-चट वाजइचाम । साते धात दहीजइ सामठी र, तउ परिण मुनि मन ठाम ||८||कु०॥ काया सेती नेह किसउ करू र, पाखर विरणसी जाय। सडग पडण छइ धरम सरीर नउरे, जिनवर जपइ न्याय कु० तिम छंडजिम वलि म डुनही रे, काया सू सवास । प्रत जेह छोडइ तिणनी कहउ र, केही कीजइ अास ||१०||कु०॥ इणि परि ते वेदन खमितां थका रे, उलसतइ सुम ध्यान । अधिके गुण्ठाणे चढतां थका रे, पाम्यउ केवल न्यान ॥११॥कु. करम च्यार वलि हरिणय अघातिया रे, तुरत लहइ सिव ठाम । अजर अमर अक्षय सुख प्रति घणारे, अनत पंच अभिराम ||१२||कु०॥ दस विध साध धरम माहे बडा रे, क्षमा धरम ते न्याय । गज सुकमाल तरणी परिजे घरइ र, तिणि नां वर्दू पाय ॥१३॥कु० सर्व गाथा ४६१] ॥ दूहा ॥ रिषि महिमा करिवा भणी, आवइ सुर तिण ठाम । दिव्य सुरभि गधोदके, वृष्टि करइ अभिराम ॥१॥ उलस ते, उलस इ
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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