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________________ २०६ जिनराजमूरि-कृति-कुसुमांजलि च्यार महावत घार, सूबउ तू निवहारी। तिरण तुझ वचन प्रमाण, सह को लोक कहइ रो ॥६॥ सोनइ न लागइ स्यांम, जाणइ लोक महीरी। तिम इणना परिणाम, न डिगई दीख ग्रही री ॥१०॥ सहस्रांववन माहि, सिविका थी उतरइ री। इम चढतइ परिणाम, जेह हुवइ सुतरइ री ॥११॥ नेम जिरोसर पासि, यावी वचन कहइ री। अगनि तरणो परि कम, इणि संसार दहइ री ॥१२॥ तुझ देसन जल धार, संगम सीत थयउ रो। ए प्राणी मइ प्राज, सुकत वीज बयउ री॥१३॥ लेस्युसजम आज +, एह कुटव तजी री । पामिसु सिव मकरद, तुझ पय कमल भजी री ॥१४॥ जिम सुख थायइ तेम, मा प्रतिबंध करउ री। देवानुप्रिय एम, भगवत वचन खरउ री ॥१५॥ सचित्त भिक्षा प्रभु एह, हम आदेश ग्रहउ रो। मात-पिता कहइ एम, इनकी लाज वहउ री ||१६|| पचमुष्टि करी लोच, गजसुकमाल ग्रहइ री। सूधउ स यम भार, प्रभुनी आण वहइ री ॥१७॥ सामाइक उच्चार, करि सावध तजइ री। क्रोवादिक परिहार, करि सम भाव भजइ ग॥१८॥ सुत सुरिण जपइ मात, तुझ नइ सीख किसी री। तउ परिण मुझ सुरिग वात, मीठी ईख जिसी री ॥१६॥ राखे त्रिकरण सुद्ध, जोव निकाय सही री। देजे तनु आधार, शुद्ध आहार लही री ॥२०॥ न कहे वचन अलीक, जिण थी सोम घटइ री। मुख थी जपे साच, जिय थी पाप कटइ री ॥२१॥ *भार, पालि x इम हुवइ सु तरैरी, जे हो वस तरई रे+भार
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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