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________________ श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई एह वचन सुरिण सुख थयउ, ते किरण ही न कहाय । भव हुँती जे ऊभगइ. थिर वीटयउ यादव कोडि सू, ग्रह तारा गरण परिवरथउ, जिम जिम सुरतरु फल फूल सू, लब हरि वधव नउ भूषणे, तिम सोभा कहिवाय || ४ || मन ते सोहड प्रति पूत्रिम नउ [ सर्व गाथा ४१८ ] J २०५ इम थाइ ||२|| ढाल -- २३ काम केलि रति हास-एहनी यादव ना कुल कोडि, मन मइ कोड धरइ रे । घन घन गज सुकमाल, यहु ससार तरइ री ॥१॥ • भारी करमा जीव, धरम न चित्त धरइ री ! उत्तम केई एक, करणी एह करइ री || २ || मंदिर चढि २ नारि, गावइ मधुर सरइ री। जय जय तू चिर नदि, वयरण इसा उचरई री || ३ || श्रनमिष नयरण निहारि, अफ्छर सोह लहड री । पचाली जिम तेह, निश्चल काय रहइ री ॥४॥ काई जपइ नारि, सोमाप एरणx तजी री । सोभागिरिस सारि, काई होइ जीरो ॥५॥ वचन अनेक प्रकार, सुगतर एरिण परइ री । नवि डोलावइ चित्त, सुभ पररणाम खरइ री ॥६॥ पच सुभट वसि आणि, सिवपुर वेग लहउ री । मागध द्यइ सीस, अपनी टेक रहउ री ॥७॥ तू कुल केतु समान, दरसण पाप हरइ री। कृष्ण प्रमुख सवि लीक, कहि कहि पाय परइ रो ||८|| 3 * सोम Xऐणि प्राणद । चद ॥३॥ झत्र सोभाय । 7
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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