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________________ श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई १६३ राजनीति पालइ राजवी। कुविसन पिण टालइ लाजवी ॥३॥ एक एक हुँती आगला । साहसीक नर रण वावला। यादव कुमर खरा मछराल । तृणइपड्यइ पिरण ऊठइ झाल ||४|| जासु, चिहुँ मइ सोभा घणी । साडी, सुहड़ विरुदना धरणी। परत वह इग* मुख भाजगी । अवर-नारि जारगइ माजणी ॥५॥ रहइ राति दिन मद भीमला जारपइ,कोक भरतनी कला। पिरणपरनारि सहोदर जेह । काछ वाच निकलंक निरेह ॥॥ भोग पुरदर लील विलास । घरपो, सू, राखइ इकलास । विषय जलधि हेलइ जे.तरइ । छयल, पुरुष को नवि छेतरइ ।।७।। भोगी भमर कुमर, दुरदृत । ते सोचइ -मन सू एकत। हरि हुरमती राखइ विघटती । कोजाइ छइ गाढी *अघटती ॥८॥ वात सहु पोतानी करई। न करई पर, निंदा पातरइ । सीखामगि धइ एकरण वार । वलती को न करई नाकार ॥६॥ लाजवंत अलविनं.को लड़ई । कुर्वण चढइ चावइ +चउतरइ। न हुवइ केहनई माथइ दंड। प्रसादा सिर दीसइ दंड ॥१०॥ करइ अनीति न बध न पडइ । बंधन केस पास नइ जुडइ । 'दोसइ बाजीगर माडीयउ । राजभवन नवि को चाडीयउ ।।११।। वधतउ माहोमाहि सनेह । दीवइ दीसइ घटतउ नेह । "गुरगना चोर न धनना चोर । मन ना चार वसईईइ'जीर ॥१२॥ थोडइथोडइ धन एकठउदा. मेली नइखरचइ सामठउ । 'पाठ पहुर घरि दय-दय कार: अलवइ कौन करइ नाकार ॥ ३|| । सतवादी नर सारइ.दीस । गिण्या-बोल बोलइ दसवीस । ऽपडथइ कसइन बोलह झूठ। पडइ साखाजेहनी पर पूठ:॥१४॥ पर दूषण,न कहइ-गुण-ग्रहइ॥ तीन तत्व सूधा सरदहंइ। } कोइ न लोपडू हरिनी कार । उत्तम यादव नउ परिवार-॥१५। [सर्व गाथा २२]] *रण *विघघति x कणवार + चउतड़इ
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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