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________________ शाळिभद्र धन्ना चौपाई १५३ नेह गहेला मानवी, मूकी कुल आचार । ते स्यु छ जे नवि कहै, वोछडवा नी वार ॥३॥ कवि जन जन मुख सांभली, जोड वयण विचार । परिण ए जो माहे वहै, जाग तेहिज सार ॥४॥ ढाल- २४ राग- आस्या धाहडी गोडो वाघारी भाधन री जाति पालव झालि इसु कहै रे, लोक चिहु री साखि । ए पिरण छोरू छैमा बापना रे,छोडो अवगुण दाखि ||१|| नाहलीय विलूधी अोलमा दियरे, भामणि भरि भरि आखि । नेहलीय गहेली संकन का करै रे, कहै माथा वडि नाखि ॥रना दूर न करतो निजर थी रे, तू ब्रह्म ने खिरण मात। आज चलै छ ऊभी मूकि ने रे, चूकै छै इण वात ॥शाना सीख कर वाट मिल्या रे, वीउडवानी वार । ते तो अह्म सुसीख न का करी रे, अनवड जेम विचार नां ते छान्या राख्या हुता रे, पिण जाण्या लक्षण तेह । मुह ऊपरली करतो तू सहु रे, पिण नवि धरतो नेह ॥शानां1० भाप सवारथ चीतवी रे, छोड चल्यो निरधार । देव न दीधो एक कूणु कडो रे, जे हुवे अह्म आधार ॥६॥ना० आसा लूधां माणसां रे, वाधा वरस विहाइ । पास किसी जमवारो गालस्याँ रे ते द्यो कत बताइ ।। नां०॥ पहली संग न छोडतो रे, हिव दीठी न सुहाय । तै दोषी जिम मेर चढाविन रे,धर नांखी ध्रसकाय ||ना०॥ जीवदया मन मे बसी रे, तिण ल्यो सजम भार । आरड़ती छोडो छो गोरडीरे, ए तुझ कवरण प्राचार ना०॥ पुरुष कठोर हृदय हुवै रे, लोक कहै ते न्याय । तिल भरि भीजे पिरण छीजे नही रे, लाख लोक कहजाइ ॥१०ना घड़े नवा भाजइ घडया रे, रतने लावे खोड़ि। सा जमवारो गर, हिव दीवाली ध्रसकाय पास किसी छोडतो रे, हर नांखी प्रसका
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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