SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शलिभद्र धन्ना चौपाई ३ घर प्राथि आप वसु करी, रूठो थको नर नाह । ते सहु मै पहिली तजी, हिव मुझ नै हो स्यानी परवाह ॥१शाकु० पण वचन हु माता तणो, लोपू नही निरधार । तिण सेझ हुती उठि ने, पाउचारइ हो साथे ले नारि ॥१२॥कु०॥ ॥ दूहा ।। श्रोणिक मन हरखित थयो, सूरति नयरण निहार । देव कुमर स्यु अवतरयो, मानव लोक मझार ॥१॥ करि प्रणाम प्रागलि जिस, ऊभो सालिकुमार । वैसारयो उछरग ले, राजाय तिण वार ॥२॥ पर कर परसे वो चल्यो, माखण जेम सरीर । चिहु दिसि परसेव चल्यो, जिम नीझरणे नीर ॥३॥ इण इण भवि कीधी नही, सुपनातरि परिण सेव । पर कर फरस न खमि सके, ए पातलीयो देव ॥४॥ स्वेच्छाचारी पर वस, रहि न सके तिल मात । सीख समपौ करि मया, मात कहै ए वात । उठ्यो प्रामगदूमरणो, महल चढयो मन रग । फिरि पाछो जोवे नही, जिम कचली भुयग ॥६।। ढाल-१० राग गोडी, भव तणों परिपाक पहनी जाति वे कर जोडी ताम भद्रा वीनवै, भोजन माज इहाँ करो ए। भगति जुगति सी थायतोपरिणसाचवउ दास भाव हु आपणो ए।।१ सहस पाक सतपाक तैलादिक करी मरदनीया मरदन दीये । जव चूरण घनसार मृगमद वासित ऊपरि उगटरगो कीयो ए ॥२॥ अछ गृह नइ पासे जल खडोखलि सनान करण आवै तिहा ए। करता जलनी केलि, पडती मुद्रडी जाणी पण न लंहै किहाँ ए ॥३॥ ते मुझ माणिक आज दीसै छै गयो, सारभूत घर मे हतो ए। ऊ चउ लेई हाथ जोवै श्रोणिक परिण न कहै मुख लाजतो ए ॥४॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy