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________________ १३२ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि कली कचरता नीगमी, मैं माहरी जमवार । आज लग जाण्यो नही, सेवक नो विवहार ॥२॥ परम पुरुष विरण अवरनी, सीस न धारू पारण । केहर कदेन सांसहैं, तुरीया जेम पलारण ॥३ जे परवस वधरण पडया, ते सुख मारणे केम । गहनो गाडो लील नो, लाडो चित एम ॥॥ ढाल है आप सवारथ जग सहु रे पहनी जाति पूरव सुकृत न मैं कीयो, पालि न जिनवर प्रारण । तिण प्राण अवर नरिंदनी, पालेवी हो मुझ ने सुप्रमाण ॥१॥ कुमर इसौ मन चीतवै, भरम भूलो रे इतला दिन सीम । परमारथ प्रीछया पछै रे, गृहवास हो रहिवा हिव नीम ।।२।कु० मन वचन काया वसि करी. सेव्या नहीं गुरु देव । तिण हेत अवर नरिंदनी, करजोडी हो करवी हुइ सेव ॥ ३० एतला दिन लग जाणतो, हु छु सहुनो नाथ । माहरै पिण जोनाथ छै, तोछोडिस हो तृण जिम ए अाथ | ४|कु० जाणतो जे सुख सासता, लाधा अछै असमान । ते सह प्राज प्रसासता, मैं जाण्या हो जिम सध्या वान ॥५॥कु० ससार सहु ए कारिमो, कारिमो एह परिवार । कारमी इण रिद्धि कारण, कुण हार हो मानव अवतार ॥६॥कु. वेसास सास तणो किसो, जे घडि मे घटि जाय । करणी तिका हिव आदरूं, जिम जामण हो तिम मरण न थाय १७) ए विषय विष फल सारिखा. जाण नही जाचद । वर्ड अमृत फल जिस, तिण साथै हो माँई प्रतिबंध ||कु० जे करै वे आगुल खरी, रोपी रहै 'दृढ पाउ । जे आँप आपो अगम, तिणआगे हो करण राणे राउ || |कु० वावू तणो भय रालि ने, बैठो करी इकतार । जे आप निरलोभी हुवे, तिरण आगे हो तृण जिम स सार ।।१०कु०
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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