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धर्म मर्म परम पुरुष कुण पावत'
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फइल रहयउ घट मइ न छुहइ घट,
को काहू कउ गुन न गहइ री हु अब भारो हु अब दुबलउ,भ्रम भूलउ सब कोइ कहइ री॥२ ज्ञानी ज्ञान दोइ करि जानइ, क्यू चेतन लक्षन निवहइ री। परम भाव 'जिनराज' पिछानइ,
तउ काहू की हाजति न रहइ री ॥३॥ ___ धर्म मर्म परम पुरुष कुण पावत ?
राग तोडी. कउण धरम कउ मरम लहइ री। मीन कमठ गगाजल झीलत,
खर नितु अग बभूति वहइ री ॥१॥कउ०।। मृग बनवास वसत निसि वासर,भूख तृषा तप सीत सहइ री। मौन लीयइ बग इत उत डोलत,
राम नाम मुख कीर कहइ री ॥२॥कउ०।। मुड मुडावत सबही गडरिया,पवन अभ्यासी भुयग रहइ री। 'राजसमुद्र' भणि भाव भगति विगु,
परम पुरुष कुण पावत हइ री ।।३।।कउ०॥ काल का हेरा तेरा क्यों कर होगा ? कितने ही आगये?
ममता निवारण
राग-कनडउ रे मन मूढ म कहि गृह मेरउ । आए किते किते आवइगे, क्यु करि हवइ गउ तेरउ॥रे०॥१ हइ तेरइ पीछइ छाया छल, काल पिशुन कउ हेरउ ।