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________________ पुनः हनुमंत वाक्यं रामचन्द्र प्रति पाप कउ पहार परतीय कउ हरणहार, ___ कहउ तउ पलक मइ पकरिहु । . पवन कउ पूत कहउतउतउ हूँ तिहारो दूत, _ 'राज' को भराए पाउं भरिहु॥३॥ज०। (७) पुनः हनुमत वाक्य रामचंद्र प्रति जउ पइ होवत राम रजारी। तउ तू भी देखत मेरी मइया, दयत दयत कू सजारी १ज०। दसउ सीस बल दयत दिसो दिसि,छीन लियत पचरंग धजारी। कन कन करूं कंगुरे गढ के, करज बुरज पुरजा पुरु जारी ॥२॥ज०॥ फेरत आन दान मेरे प्रभु को,आपण वस कर सकल प्रजारी। 'राज' रजा विरणु इया हुइ आई, लका लाइ हुडाग प्रजारी ॥३॥ज०॥ (८) मदोदरी वाक्यम् राग-धन्यासी ( जयतश्री) आज पिउ सोवत रयण गई नायक निपुण दूध मई काहे, कांजो आरण ठई ॥१॥आ०॥ मेरउ कहयउ विलग जिन मानउ, हइ विषुवेल वई। विगरे काम कहउगे मोकु, किण ही न खबर दई॥२आ० सुणियत हइ गढ लक लयण कु, होवत राम तई। डरत न कहत 'राज' सुकोऊ, कन कन बात भई ॥३॥आ०
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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