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________________ जिनराज सूरि कृति - कुसुमांजलि (५) राम वाक्यम् सुभटानाम् असुरपति आपणि कमाई तई न डरहे । कोण जलनिधि जल तरिहै ॥ अ०॥१॥ वाकड गढ वांकी खाई, वांके हइ जाके सहाई । काहू कु नजर मांहि न धरहइ || अ० || २ || जीते च्यारे हग्गपाल, इन्द्र हु कइ उरिसाल 1 माता भी विधाता पाउ परिहई || अ० ॥ ३ ॥ लंका कउ कमार ठउर ठउर हूं को जयत वार । गह भी भराए पाउ भरिहर ||आ० ||४|| सोस दस वीस भुजईश की कृपा यँ पाए । मारयो भी काहू को न न मरिहइ || अनाशा as as वीरन कइ आगइ कहइ रघुवीर । सीय की खवर कउन करिहई ||अ० || ६ || L ८६ ( ६ ) हनुम ंत वाक्यम् करिहु, दशमुख थई न न डरिहु । क्षु कछु रघु राम कहइ सोऊ' सोय की खबर सुतो वातन की वातहर, सीय भी कहउ तउ आण घरिहु ॥१॥ ज० ॥ जलधि उलंघ गढ लक भी उलधि कइ, १- सोइ कहउ तउ पलक मइ पकरि । पावक की पोट दे दे कंचन कउ कोट गारू, कहउ तउ निशाचर सुलरिहं ॥२॥ ज० ॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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