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________________ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि तहयपलि अंक सठाण करि संठिअ । जिण भवण मज्झि जिण विव जह दीसए। हेल दे हियय मह हेज करि हीस ए ।।२।। आज मह देवमणि कामघट तुटुउ । अमिय मय मह मह उवरि किर बुढउ ।। आज घर अगणइ कप्पदुम फलियउ । कणय तणु वोर जिरणराय जउ मिलिअउ ॥३॥ जिण चवण जम्म वय नाण निव्वाण ए। गभ संकमणइ अनुज्झ कल्लाण ए॥ जम्मि पुरि जाय ते नयण भर जोइयइ । सरिअ तुइह चरिअ निय कम्म मल धोइयइ ॥४॥ थापना रूप अरिहत जे ऊथपइ । मुगध मन हरिण वसि करण ते इम जपइ ।। कज्ज सावज्ज नाऊण किम कीजीयइ। तेहनइ मधुर वचने करी पूछीयइ ॥५॥ थापना रूप पिण साच जिणवर कहइ । एहनी साख ठाणांग माहे लहई ।। चित्त कय कामिणी मोह भर कारगा। तेम जिण ठवण पावाण उवसामगा ॥६॥ नार व्रत धार पिरण सुद्ध श्रावक करइ । दव्व थय कूव दिळूत सो अणुसरइ ।। साधु भगवत मन सुद्धि पणवय धरइ । सो नदी पाय नावाइ जिम ऊधरइ ॥७॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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