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________________ धी नेमिनाथ चतुर्मासिकम् आइ मिलइ जउ होरउ जाचउ, काच सकल मत राचउ रे। 'राजसमुद्र' साहिब ए साचउ, नयणे निरखी नाचउ रे ।शब० श्री बीकानेर मण्डन नमिनाथ स्तवनम् श्री 'नमिनाथ' जुहारियइ, मुगति रमणि उर हार लाल रे । साचउ साहिब सेवीयइ, वंछित फल दातार लाल रे ॥श्री।।१।। देव अवर सकलंक जे, ते मुझ मन न सुहाइ लाल रे। 'सुरतरु अंगणि जउ फलइ, ___ कवण कनकफल खाय लाल रे ॥श्री।।२।। धन मंत्रीसर 'करमसी' अविचल राख्यउ नाम लाल रे । अवसर लाधइ आपणइ, कीघउ उत्तम काम लाल रे ॥श्री।।३।। 'वोकमपुर' सिर सेहरउ, निरुपम नवल विहार लाल रे । भवियण नयणे निरखियइ, ऊजलगिरि अरगुहार लाल रे ।।श्री०॥४॥ जिणवर ना गुण गावता, मन धरि भाव विसेस लाल रे गोत्र तीर्थंकर बाधीयइ, 'राजसमुद्र' उपदेस लाल रे ॥श्री०॥५॥ ___ श्री नेमिनाथ चतुर्मासकम् रोग - मल्हार श्रावण मइ प्रीयउ सभरइ, बू द लगइ तनु तीर । खरीअ दुहेलोपन घटा, कवण लहइ पर पोर ।। पर पीर जाणत.पापी, पपीहउ प्रीउ प्रोउ करइ । ऊमई बाहर घटा चिहु दिसि, गहिर अंबर घर हरइ।। दामिनी चमकत यामिनी भर, कामिनी प्रीउ विण डरइ ।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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