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________________ ४४ जिनराजमरि-शनि-सगांजलि पामियइ अविचल परमपद मुग्व दरमणः जिणवर तणाः ॥३॥ इति श्री चवीनटा गीतम् श्री बीकानेर मंडन सुमतिनाथ (भांडासर ) गीतम् चउमुख तीन विभूमिआ, नलिनी गुत्म समान । ऊ चउ शिखर मुहामणड, मेनु शिखर समान ||६||मol मरुमण्डल सिर सेहरउ, "वोकमपुर" सिणगार । 'भांडइसाह' करावियउ, सुमति जिणद विहार ||शाम०॥ भुवण सरिस भुवणतरड, भवणतर नवि दीठ। तिण रग लागउ माहरड, जाणे चोल मजीठ ॥शाम० भावइ भोली भामिनी, गडस गावद गीत ।। वचन विलास सफल करइ, चउमुख लाड चीत।।शाम०॥ जिनवर नयण निहारतां, प्रगटयउ परमाणंद । 'राजसमुद्र' मुनिवर भणइ,जिणवर सुरतरु कद ||शाम०॥ श्री वासुपूज्य स्तवनम् वहिनी एक दयण अवधारउ, जिणवर भुवण पधारउ रे। श्री वासुपूज्य जिणद जुहारउ, विव अवर संभारउ रे ।शवा० जयणा सु मारग चालीजई, विकथा मल न कीजइ रे । दुरमति तिमिर जलजलि दीजइ,नरभव लाहउ लीजइरे ब०१२ जिम जिम मोहन मूरति दीसइ, होयडउ हेजइ हीसइ रे। हिव चउगइ जलरासि तरीजइ, ध्यान धरउ निसि दीमइ रे॥व०॥३॥ अनुपम समता साकर कूजउ, इण सम कोइ न दूजउ रे । चाहउ भविअण मुगति वधू जउ,तउ प्रहसम प्रभुपूजउ रे ।४।ब०
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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