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________________ न तु अमृतत पिंडीभूत ह ग बला ( २५ ) ५८ सरोवर-वर्णन (१) . अगस्त्रि ना रोस लगी सृष्टि का अभिनव समुद्र सरिज्यउहुइ, आठ दिग्गजे दंतूसले थिरू हुतउ निरालब भणीउ जिसउ आकाश विसम्य हुइ। आदि वराह पृथ्वी ऊधरी तीणइ म्लान कि जल सरित हुइ वन लक्ष्मी नउ जिसउ क्रीडा सरोवर हुइ किवाहइ नीलकंठ तण्हंउना कठ विपु वितु घूटिवा भणीनइ भय ब्रह्मा पाताल हूंतउ लोक जीवन हेतु अमृतकुड आणी मेव्हउ हुइ सत्कवि सहस्रमुख विनियंतु जिसउं वचनामृत पिंडीभूत हुउ हुइ धवल स्फटिक पापाण तणी पालि वृक्षावली शोभितु हस बग बलाहक चकोर चक्रवाक मछय कच्छप कूर्म पाठीन पीठ जलचर जीव विशेषि विराजमान । वन हस्ती जलक्रीड़ा करई, तापस जन.वल्कल प्रक्षालइ छइ सुरसुदरी विद्याधरी जल केलि करई भ्रमर गुण गणाट करइ वाइं पाणी झलकइ घट नाला सूसूई पाणी घूमूइ पथिक जनना श्रम हरइं एवं विध सरोवर ॥ ५ ॥ (मु) ५६ सरोवर-वर्णन (२) पानि तणो परिगरु, देहरी तणउ समहरु ।। चउकी चउखंडे झलहलइ, उारे पाणी खलहलइ । पगथिया रा सारुयार वरडी उदार लहरी मला उछलइ । मत्त वारणा ऊपरि पाणी वलइ समुद्र नी परि गभीर, निरुपमान नोरू । उपरि जाण भर इं, खडगू ए तरीई । नहवाली अगोरिजालि । प्रवाह छूटइं, बंध फूटइ । देहरि दंड कलस अामलसारा सोना तणा झलकह । जला ढिरिणि कुल वधू तणे पागि नूपर खलकइ । तडिई किर्तिस्तभ दीसई, लोक हिया विहसइ । मेघ मल्हार (राग) गाईयह वीणा वश मनोहर वाईयइं। देहरीए पूजा कीजइ, जन्म फल लीजइ । शत पत्र, सहस्त्र पत्र लक्ष पत्र । सूर्य वशी, सोमवंशी कमल करी सश्रीक दीसइ । "" - " रासा उयारा २ तीर ३ भरीयइ ४ तरीए ५ जलादिरिणी।
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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