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________________ (२८१) (१) मांगलिक दधि, दूर्वा, कुसम, अक्षत, चदन, नंदित', सिद्धार्थ, गोरोचना, कुंकुम, पूर्णकलत, हलिय, तोरण, चमर, जवाग । अहिव तणउ मगलुचारु, घट्ट प्रदीप मणिमाला, प्रवाल, वटरवाल ए द्रव्य मगलीक । देवपूजन गुरुवंदन प्रमुख भाव मगलीक | (पु०) (२) वर्धापनक नगर तणा प्रधान नर तेडावड, महोत्सव करावइ । स्वर्णमय दीप ज्वाल्या, घर तरणा कूट अजूयाल्या । त्वर्णमय मूसल अभ्या, सुवर्ण कलश स्थाप्या । घर धवल्या, भित्ति भाग कउल्या, तिलिया तोरण बाध्या । प्रसादि वैजयन्ती झलकावी, गोति मेल्हावी, अमारि करावी । सर्वत्र मंगलाचार दीजइ, तर वाजइ । अक्षत पात्र साचरइ, तंबोल वापरइ । अर्थ व्ययना साभल नहीं, इसउ वधामणउ हूसही ॥ ७७ ।। ( जै०) (३) महोत्सव देखने की उत्कंठा तेण महोत्सवि समय बालिकाहार त्रूटते, वेणीदंड छूटते। नेऊरि फुटते, पटठल फाटते । घट जुअल विणसते, अनेकि अाभरणि खिसते । मुक्तालकारि पडते, स्वेद विंदु चडते। जोवा तणइ कारणि चालिउ । (८६ जो०) ४ पुत्र जन्म महोत्सव राउ करावइ, टण्डपाक निरोक हूउ । सर्वत्र मार्ग वोर वालिया, गोमय पाणी सोंचिया । मचोन्मच बाधा, वानरवालि बाधी । . हट्ट शोभा सर्वत्र रची, सिद्धार्थ स्वस्तिक भरिया, पूर्ण कलश त्याग्या । १ वीजपूर २ जुअल दीप । १३८ जो० मे नदितूर और घट्ट के बाद ये अधिक है ।
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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