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________________ ( २०७ ) एकवीस गुण सयुक्त उत्तमोत्तम कार्य प्रसक्त । पितृ मातृ भक्त । दक्ष विवेक विधि, दक्षिण उदधि । भलो भावना भावक, सर्व जीव श्रावर्जक | गुरु वचन श्राराधक, जिन शासन प्रभावक | धन धान्य समृद्धि, प्रत्यत समृद्धि । टानेक वीर, प्रति ही गभीर । देव गुरु चरण मधुकर, सर्व कार्य धुरधर । एहवा श्रावक । (६२) सु श्रावक वर्णन ( २ ) पाप नह विषद विरक्त चित्त, शत्रु मित्र सम युक्त | शुद्ध व्यवहार नउ करण हारु, सन्मार्ग नु सचार हारु | धर्म धुरन्धर, मेवक जन सुखकार । उचित उलखइ । - दया दान पूरउ, सुकृत साचिवा तरउ । चार वतु, हाटि इस तउ कृतान्तु | कुह प्रतिकूट न चवई, त्रिकाल देव पूजा साचव । सुश्रावकु, बारह व्रतु प्रति पालक । मद्गुरु नी श्राजा वहइ, पुण्यवत माहि लीह लहर || २६ ॥ नै. (६३) श्रावक वर्णनम् (३) श्रावक धुरा सूघउ समकित धरइ, विकथा च्यारे परिहरिह || परभव थकी उरइ, सदगुरु ना पाय अगुसरइ ॥ जीवनी जयगा करइ, सकृत भडार भरइ ॥ विसेष ना जाए, गुरु मुख सुणइ वखाण || राखइ सहूना प्राण, जिन वचन करइ प्रमाण ॥ चारह व्रत राखइ, पर मर्म न भाख ॥ "L 1 श्रापना अवगुण दाखइ, सहूनी साखर ॥ उपगार कइ अवसर लहो, साइमी सु धरणइ बइसइ नही || कुही नु श्रालि नद्य, नव तत्वादिक नउ अर्थ ल्यइ ॥ देवाधिदेवनी कर रचा न करइ कुराही री चरचा ॥ उत्तरासण घाली, लाबाक्षमाश्रमण द्यइ मन वाली ॥ a पण पर नी विगत नाइ, तर सद्गुरु श्रावकनई वखारगद ||
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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