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________________ ( २०६ ) अक्रोध, विरोध, विबुद्ध, विशुद्ध । आदेयोदार स्फार तर वचन, टतात्यत सशीति निर्वचन । एव. गुरु ||४ | जो. ( ५६ ) तपोधना महासती साध्वी पुण्यवति तपोधना, करइ देहनी साधना । सदैव भणिवा गुणिवा नउ आक्षेपु, नथी लागतउ विलेषु । श्राविका हृइं भणावद्द, धर्म भाव भावई । प्रत्युत्तम नारि, महासती चटनवाला नइ अवतार | गच्छ चिन्ता चतुरि, विज्ञान विद्या विदुरि । नी कन्हलि प्रतिबोधनी शक्ति एवडी, रघु हुंतउ मान गजेन्द्र चडी । वचन छलि प्रतिबोध बाहुबलि । श्री युगादि देव नइ समवशरण प्राण, केवल श्री अलकरतउ देखी नगडीसि वखाणउ । ते ब्राह्मी सुन्दरि, जेह श्राचार करी ऊधरी । एव विध महासती ॥ ८ ॥ जै. (६०) साधु (१) उत्तम नगर, गुरु क्रियानुष्ठान पर, जिन वचन धुरंधर, सरस्वति लब्ध प्रसाद वर, त्रिण तत्व पालन तत्पर । नकल गुण भंडार, विज्ञ श्रागम विचार, सकल सब ग्राधार, शास्त्र ना लकार । जीवादि तत्व विचार, विद्वज्जन सभा शृंगार हार, त्रिण गुप्ती कारक, पंच सुमति पतिपालक | चैतालीस सटोप टालकं, प्रहार सहस्र स्त्री सीलाग रथ धारक । तेर काठीया जीपक, भ्रष्ट कर्म छीपक । त्रिगुण गुमि प्रवर्तक || ( पू० ) ( ६१ ) श्रावक ( १ ) द्वादस व्रत धारक, शुभ ध्यान मन चालक । श्री बिनपाट श्राराधक, अगणित पुण्यकारक । दर्शन पोषक, दान शील तप भावना भावक । 1
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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