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________________ ( १६५ ) चिन्तामणि कल्पवृक्ष कामधेनु तेहनु केवल उद्यापीरा जेहना । देश कराया चन्द्रमा सूर्य जलघर, स्वर्ग्य विवर्ण्य करु | इस धर्म राउि ॥ ३१ ॥ जै० ( ३५ ) जिन धर्म जिम देव मध्य इन्दु, तारा मध्य चन्दु | स्नग्ध मध्य वृतु, औषध मध्य श्रमृतु । बुद्धिमत मध्य वृहस्पति, निरीह मध्य यति । तिम धर्म मध्य जिन धर्मु । ( ३६ ) धर्म महात्म्य जे गया विदेश, पडिया सबलह क्लेश, ताण्या पाणी नइ पूरि श्राक्रम्प अक्रूर, चाप्या सधरि, डसिया विसधर, 1 धरिया राये, लेल्या घण घाए मुरडिया भोगे, दूहविया रोगे, पाडिया बंदी, पंडिया विछदी, तिहा सविन धर्मनों श्राधार, एह साचो विचार, 'वीर' वटई बारम्वार, बीजऊ कारिमउ व्यवहार || ( कु० ) ( ३७ ) धर्मावार, जे गया विदेसि, पडिया क्लेशि । ताण्या पाणी नह पूरि, श्राक्रमण क्रूरि । चाप्यात घरि, डसीया विषधरि । घरीया राए, लेल्या घण धाए । मुरडीया, मोगे, दूहवीया रोगे । पाटिया चंटि, पडिया विछदि । तिहाँ सविहु नइ धर्म्म नउ श्राधार । एसाच विचार, वीज कारिमड व्यवहार । ( ३८ ) धर्म ससाराभोधि तरण हेतु, यशः प्रसाद केतु । विचक्षण कीर्ति नर्त्तकी रंगभूमि प्रदेश सकल सौख्य बीजाकुरोहम क्षेत्र निवेस Haषि तोल कल्लोल चपल लक्ष्मी तगु वशीकरण । समय गुण गणामनय ( पू० )
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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